अनुमानों और अटकलों के दौर से निकलके अब जलवायु परिवर्तन ने एक स्थाई चोला पहन लिया है। अब यह पैरहन भी तार -तार हो चला है। चलिए कुछ विज्ञान की प्रामाणिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट के आलोक में अपनी बात कहने का प्रयास करते हैं : जलवायु परिवर्तन के प्रभाव न सिर्फ हमारी सेहत को ही अपना निशाना बना रहे हैं चौतरफा उत्पादकता ,खाद्यान्नों की आपूर्ति पृथ्वी की सतह के बढ़ते तापमानों का ग्रास बन रही है। बे -इंतहा गर्मी का खमियाज़ा दुनियाभर के बुजुर्गों को ज्यादा भुगतना पड़ रहा है।योरोप में ऐसे ही उम्रदराज़ लोगों का ४२ फीसद ,पूरबी मेडिटरेनियन क्षेत्र का ४३ फीसद ,३८ फीसद अफ्रिका और ३४फीसद एशिया में बढ़ते तापमानों की लपेट में आया है। बे -हद की गर्मी और बे -इंतहा की सर्दी ६५ से पार के लोगों पर भारी पड़ती है। हाल फिलाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बतलाया कि २०१७ में भूमंडलीय स्तर पर कार्बन उतसर्जन (Carbon Emission ) सर्वाधिक स्तर को छू गया था। जन सेहत पर इसके दुष्प्रभावों के फलस्वरूप काम के घंटे कम होने से उत्पादकता गिरी है ,प्रति एकड़ प्राप्ति फसलों की कमतर हुई है ,मच्छरों से पैदा होने
कफ की समस्या है तो भी पीते रहें दूध, नहीं होगा नुक्सान। खानपान में भी वर्जनाओं का प्रवेश कई चीज़ों को लेकर देखा जाता है खांसी जुकाम ,पुराने बलगम में दूध न पीने की सलाह भी कुछ - कुछ ऐसी ही है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।बेहद नुकसानी उठानी पड़ सकती है इन गफलतों की। यथार्थ : दूध और दुग्ध उत्पाद लेने से कफ नहीं बनता है इसके विपरीत डेयरी प्रोडक्ट्स न लेने से ,पोषकता की कमी से ,मांसपेशियों में दर्द ,बेहद की थकान और अस्थियों के घनत्व में गिरावट आ सकती है अस्थियां (हड्डियां )कमज़ोर होकर हलकी फुलकी चोट लगने से भी टूट सकतीं हैं। COPD -Chronic Obsessive Pulmonary Disease या पुरानी चली आई फेफड़ों की थैलों में सूजन एवं संक्रमण से Chronic Bronchitis से जुड़ी लाइलाज बीमारी है जिसमें सांस नालियों में सूजन आ जाती है। असरग्रस्त व्यक्ति को ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। वजन में गिरावट आने लगती है अगर वक्त पर इलाज़ मयस्सर न हो तो मर्ज़ लाइलाज COPD SYNDROME चरण में तब्दील हो जाता है। इस मर्ज़ के दुनियाभर में तकरीबन सात करोड़ और अकेले भारत में कोई तीन करोड़ मामले हैं। इस लाइलाज